Friday, February 19, 2021

कोरोना का खतरा अभी टला नहीं

कोरोना अभी गया नहीं है किंतु हमने मान लिया है कि यह जा चुका है। चूंकि देश और राज्यों में अब सबकुछ खुल चुका है अतः बेपरवाही भी उसी प्रकार से बढ़ गई है। अब शायद ही कहीं दो गज की दूरी का पालन हो रहा हो। अब शायद ही- अपवादों को छोड़कर- कोई मास्क पहन रहा हो। बेफिक्र अंदाज में सब इधर-उधर घूम रहे हैं। सरकार और प्रशासन की तरफ़ से सख्ती भी अब उतनी नहीं रही। पहले जब सख्ती थी, तब ही हमने उसे कितना माना। बेफिक्र और लापरवाह बने रहना हमारी फितरत है। इसे कोई नहीं बदल सकता। शरीर को कितना ही कष्ट दे लेंगे मगर बने लापरवाह ही रहेंगे।

पढ़ने व सुनने में आ रहा है कि कोरोना वायरस एक बार फिर से हम पर हावी होने लगा है। देश में कुछ जगह धीरे-धीरे कर मामले बढ़ने लगे हैं। एकाध जगह लॉकडाउन पुनः लगाया भी गया है। चिंताजनक यह है कि सरकार ने स्कूलों को खोलने के तुगलकी आदेश दे दिए हैं। जबकि कोरोना का खतरा अभी भी बरकरार है। स्कूलों को अभी नहीं खोलना था। माना कि ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ दिक्कतें आ रही हैं। कुछ छात्र ठीक से कर भी नहीं पा रहे। पर वर्तमान स्थिति को देखते हुए अभी स्कूल खोलने से बचा जाना चाहिए था। मगर क्या करें, स्कूल अपना आर्थिक फायदा देख रहे हैं। एक साल से बंद पड़े स्कूलों में सारी गतिविधियां बंद हैं। कुछ में फीस भी नहीं आ रही। स्टाफ को आधी तनख्वाह दी जा रही है। किंतु ये सब बच्चों की जिंदगी से बढ़कर तो नहीं।

वायरस बच्चे या बूढ़े में भेद नहीं करता। वो किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता। पूरी दुनिया में हुईं मौतें इस बात की गवाह हैं। शायद ही कोई ऐसा देश बचा रहा हो जहां कोरोना ने आतंक न मचाया हो। बहुत कुछ नहीं बल्कि सबकुछ इसने नष्ट करके रख दिया। कितने ही लोग अवसाद में चले गए। कितनों की नौकरियां छूट गईं। रिश्तों में दरारें पड़ गईं। कितनी ही महिलाएं लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकार हुईं।

देखकर लगता है कि हमें ही अपनी जान की फिक्र नहीं। अगर होती तो वायरस पुनः लौटकर न आता। लॉकडाउन का दौर बेहद कठिन था। लोगों के हाथों में न रोजगार रह गया था न कोई उम्मीद। घरों में कैद होकर रह गए थे सभी। दूसरी तरफ़ मजदूरों का पलायन, दर्द और बढ़ा रहा था। हजारों किलोमीटर का सफर पैदल ही करने को वे अभिशप्त थे। कितनों ने ही बीच सफर में दम तोड़ दिया था। सबकुछ कितना भयावह था। 

स्थितियां अब भी बहुत सुधरी नहीं हैं। सरकार अपने तरीके से जनता को बहला रही है कि देखो हमने सबकुछ खोल दिया है। अब तुम जानो, तुम्हारा काम। अपनी जिम्मेदारी से पलड़ा झाड़कर, सरकार बहादुर फिलहाल चुनावों में व्यस्त हैं। मानो- चुनाव लोगों की जिंदगी से कहीं बढ़कर हों। सरकार को अगर जनता की इतनी ही परवाह होती तो लॉकडाउन में बड़ी तादाद में मजदूरों का पलायन नहीं होता। लेकिन देश में या तो सबकुछ जुमलों के आधार पर चल रहा है या फिर भक्ति के दम पर। जनता का कोई मालिक नहीं। अपनी सुरक्षा वो खुद करे।

पुनः सिर उठाते वायरस से अगर बचना है तो लापरवाही को हमें त्यागना ही होगा। न केवल खुद बचना होगा, साथ-साथ दूसरों को भी बचाना होगा। कहीं ऐसा न हो कोरोना वायरस फिर से हम पर कहर बरपाने लगे।

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