सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सोशल मीडिया (जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप) पर नकेल कसने को कहा है। और, कुछ गलत नहीं कहा है। अब वाकई समय आ गया है, जब केंद्र सरकार सोशल मीडिया के खिलाफ कोई सख्त निर्णय ले।
माना कि सोशल मीडिया स्वतंत्र अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम है। यहां कोई भी अपनी बात खुलकर कह-लिख सकता है। दोस्त बना सकता है। फ़ोटो शेयर कर सकता है। हर विषय पर स्टेटस चढ़ा सकता है। लेकिन, यहां किसी को ट्रोल करने या अभद्र भाषा का प्रयोग करने का हक किसी को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी यही है। एक जज ने तो सोशल मीडिया को इतना खतरनाक बताया कि यहां से वे आधे घंटे में एके-47 भी खरीद सकते हैं।
ट्रोलिंग सोशल मीडिया का सबसे घृणित पक्ष है। आप सरकार या किसी व्यक्ति के विरुद्ध असहमति जतला दीजिए, फिर देखिए आपको यहां कैसे और किस हद तक ट्रोल किया जाता है। ट्रोलिंग में अभद्र भाषा का जिस तरह प्रयोग किया जाता है, उसे किसी भी सूरत में उचित नहीं कहा-माना जा सकता।
अभी हाल मशहूर अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा को, केबीसी में एक सवाल का उत्तर सही न दे पाने के कारण, जिस तरह फेसबुक और ट्विटर पर ट्रोल किया गया, वो बहुत ही दुखद था। कोई जरूरी तो नहीं सबको हर विषय का ज्ञान हो ही। कभी-कभी बहुत ही साधारण से सवाल पर हम भी चूक जाते हैं। कई पढ़े-लिखे लोग ऐसे भी देखे गए हैं, जिन्हें हिंदी का क ख ग तक नहीं आता था। तो क्या हम उन्हें ट्रोल करने बैठ जाएंगे। सुबह-शाम सोशल मीडिया पर उनका मख़ौल उड़ाएंगे। उन्हें तरह-तरह के ताने देंगे। उनके विरुद्ध दुष्प्रचार करेंगे।
कहना न होगा, सोशल मीडिया पर सबसे अधिक प्रताड़ित महिलाओं को किया जाता है। उन पर तरह-तरह की टिप्पणियां की जाती हैं, मीम बनाए जाते हैं, उनके खिलाफ भद्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। वीडियो बनाकर उनका दुष्प्रचार किया जाता है। इस सब पर लगाम कसना बेहद जरूरी है।
कभी-कभी तो सोशल मीडिया 'बंदर के हाथ में उस्तरा' जैसा आभास देता है। किसी की भी गर्दन पर वार करने को तैयार।
सबसे ज्यादा शिकायत यहां भाषा को लेकर है। शर्म तब अधिक आती है, जब पढ़ा-लिखा वर्ग भी किसी के खिलाफ नीच भाषा का इस्तेमाल करता है। खुलेआम गालियां बकता है। ऐसा लगता है, टिप्पणी करने की जल्दबाजी में हमने अपनी भाषा पर ठहरकर सोचना बिल्कुल छोड़ ही दिया है। जरा-सी आलोचना पर ही ऐसे आपे से बाहर हो जाते हैं कि कुछ पूछिए मत। हद यह है कि व्यक्ति के खिलाफ निजी (अश्लील) टिप्पणी करने से भी नहीं चूकते।
सोशल मीडिया लत से कहीं ज्यादा बीमारी बनता जा रहा है। हर समय निगाहें फोन पर टिकी रहती हैं। उंगलियां टच-स्क्रीन पर रपटती रहती हैं। न हम आपस में किसी से मिलते हैं, न दो घड़ी बैठकर हाल-चाल लेते हैं। दुख-सुख भी फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही शेयर कर फर्ज अदायगी कर देते हैं। खाना खाते वक़्त भी निगाहें मोबाइल से दूर नहीं रह पातीं। आखिर यह सब क्या है? कहां लिए जा रहे हैं हम अपने आप को?
अक्सर लगता है, हम मोबाइल को नहीं, मोबाइल हमें चला रहा है। हमारा इस्तेमाल कर रहा है।
हत्या और आत्महत्या की घटनाएं जिस तेजी से सामने आ रही हैं, ये संकेत भी सुखद नहीं हैं सोशल मीडिया के लिए। कैसे-कैसे लोग हैं, जो अपनी आत्महत्या का वीडियो खुद ही यहां वायरल कर देते हैं। फिर उन वीडियो पर आने वाले कमेंट तो और भी अभद्र होते हैं। कुछ लोगों को ट्रोलिंग का सामान मिल जाता है।
वैसे, सोशल मीडिया (खासकर- फेसबुक और ट्विटर) को आधार से जोड़ने का प्रस्ताव भी बुरा नहीं। इससे कुछ हद तक तो लगाम लगेगी ही। फेक एकाउंट्स और खबरों में भी थोड़ी कमी आएगी। वरना तो होता यह है कि कैसी भी उल्टी खबर को सही बनाकर वायरल कर दिया जाता है। यह कहना गलत न होगा कि सोशल मीडिया पर 80 फीसद खबरें फेक ही होती हैं। कई दफा तो समझदार लोग भी उन फेक खबरों को सही मान साझा कर देते हैं।
समाज में कितने ही फसाद फेक न्यूज के कारण भड़के हैं। पिछले दिनों भीड़ द्वारा हिंसा में जो बढ़ोतरी हुई उनमें फेक न्यूज़ का बहुत बड़ा हाथ है। कुछ ही मिनट में किसी भी खबर का वायरल हो जाना, चिंता का सबब बनता जा रहा है। सही और गलत की पहचान होना जरूरी है। नहीं तो बेकसूर लोग बेवजह ही मारे जाते रहेंगे।
इस सब के बावजूद कुछ लोगों ने समझदारी और धैर्य से काम लेते हुए खुद को सोशल मीडिया से दूर भी किया है, निरंतर कर भी रहे हैं। धीरे-धीरे वापस अपनी सामान्य जिंदगी में लौटने लगे हैं। खाली समय किताबों के साथ गुजारने लगे हैं। आपसी रिश्तों-संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। न फेक न्यूज़ पर विश्वास करते हैं, न ही उसे शेयर करते हैं। ट्रोलर्स को भी मजा चखाना उन्होंने शुरू कर दिया है। यह सब जरूरी है। नहीं तो हम ट्रोलिंग, फेक न्यूज़, अभद्र भाषा आदि के अंधे कुएं में ही यों ही डूबते चले जायेंगे।
बेहतर तो यही रहेगा कि केंद्र सरकार जितना जल्दी हो सके सोशल मीडिया के खिलाफ सख्त कानून बनाए। ताकि बात-बात पर इसका दुरुपयोग करने वालों पर अच्छे से लगाम कसी जा सके।
सोशल मीडिया की शुरुआत अपनों को नजदीक लाने, अनजान लोगों से मित्रता बढ़ने के लिहाज से की गई थी, नाकि किसी को ट्रोल करने या किसी के खिलाफ दुष्प्रचार करने को। इसके लिए हमें खुद को सुधारा ही होगा।
माना कि सोशल मीडिया स्वतंत्र अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम है। यहां कोई भी अपनी बात खुलकर कह-लिख सकता है। दोस्त बना सकता है। फ़ोटो शेयर कर सकता है। हर विषय पर स्टेटस चढ़ा सकता है। लेकिन, यहां किसी को ट्रोल करने या अभद्र भाषा का प्रयोग करने का हक किसी को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी यही है। एक जज ने तो सोशल मीडिया को इतना खतरनाक बताया कि यहां से वे आधे घंटे में एके-47 भी खरीद सकते हैं।
ट्रोलिंग सोशल मीडिया का सबसे घृणित पक्ष है। आप सरकार या किसी व्यक्ति के विरुद्ध असहमति जतला दीजिए, फिर देखिए आपको यहां कैसे और किस हद तक ट्रोल किया जाता है। ट्रोलिंग में अभद्र भाषा का जिस तरह प्रयोग किया जाता है, उसे किसी भी सूरत में उचित नहीं कहा-माना जा सकता।
अभी हाल मशहूर अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा को, केबीसी में एक सवाल का उत्तर सही न दे पाने के कारण, जिस तरह फेसबुक और ट्विटर पर ट्रोल किया गया, वो बहुत ही दुखद था। कोई जरूरी तो नहीं सबको हर विषय का ज्ञान हो ही। कभी-कभी बहुत ही साधारण से सवाल पर हम भी चूक जाते हैं। कई पढ़े-लिखे लोग ऐसे भी देखे गए हैं, जिन्हें हिंदी का क ख ग तक नहीं आता था। तो क्या हम उन्हें ट्रोल करने बैठ जाएंगे। सुबह-शाम सोशल मीडिया पर उनका मख़ौल उड़ाएंगे। उन्हें तरह-तरह के ताने देंगे। उनके विरुद्ध दुष्प्रचार करेंगे।
कहना न होगा, सोशल मीडिया पर सबसे अधिक प्रताड़ित महिलाओं को किया जाता है। उन पर तरह-तरह की टिप्पणियां की जाती हैं, मीम बनाए जाते हैं, उनके खिलाफ भद्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। वीडियो बनाकर उनका दुष्प्रचार किया जाता है। इस सब पर लगाम कसना बेहद जरूरी है।
कभी-कभी तो सोशल मीडिया 'बंदर के हाथ में उस्तरा' जैसा आभास देता है। किसी की भी गर्दन पर वार करने को तैयार।
सबसे ज्यादा शिकायत यहां भाषा को लेकर है। शर्म तब अधिक आती है, जब पढ़ा-लिखा वर्ग भी किसी के खिलाफ नीच भाषा का इस्तेमाल करता है। खुलेआम गालियां बकता है। ऐसा लगता है, टिप्पणी करने की जल्दबाजी में हमने अपनी भाषा पर ठहरकर सोचना बिल्कुल छोड़ ही दिया है। जरा-सी आलोचना पर ही ऐसे आपे से बाहर हो जाते हैं कि कुछ पूछिए मत। हद यह है कि व्यक्ति के खिलाफ निजी (अश्लील) टिप्पणी करने से भी नहीं चूकते।
सोशल मीडिया लत से कहीं ज्यादा बीमारी बनता जा रहा है। हर समय निगाहें फोन पर टिकी रहती हैं। उंगलियां टच-स्क्रीन पर रपटती रहती हैं। न हम आपस में किसी से मिलते हैं, न दो घड़ी बैठकर हाल-चाल लेते हैं। दुख-सुख भी फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही शेयर कर फर्ज अदायगी कर देते हैं। खाना खाते वक़्त भी निगाहें मोबाइल से दूर नहीं रह पातीं। आखिर यह सब क्या है? कहां लिए जा रहे हैं हम अपने आप को?
अक्सर लगता है, हम मोबाइल को नहीं, मोबाइल हमें चला रहा है। हमारा इस्तेमाल कर रहा है।
हत्या और आत्महत्या की घटनाएं जिस तेजी से सामने आ रही हैं, ये संकेत भी सुखद नहीं हैं सोशल मीडिया के लिए। कैसे-कैसे लोग हैं, जो अपनी आत्महत्या का वीडियो खुद ही यहां वायरल कर देते हैं। फिर उन वीडियो पर आने वाले कमेंट तो और भी अभद्र होते हैं। कुछ लोगों को ट्रोलिंग का सामान मिल जाता है।
वैसे, सोशल मीडिया (खासकर- फेसबुक और ट्विटर) को आधार से जोड़ने का प्रस्ताव भी बुरा नहीं। इससे कुछ हद तक तो लगाम लगेगी ही। फेक एकाउंट्स और खबरों में भी थोड़ी कमी आएगी। वरना तो होता यह है कि कैसी भी उल्टी खबर को सही बनाकर वायरल कर दिया जाता है। यह कहना गलत न होगा कि सोशल मीडिया पर 80 फीसद खबरें फेक ही होती हैं। कई दफा तो समझदार लोग भी उन फेक खबरों को सही मान साझा कर देते हैं।
समाज में कितने ही फसाद फेक न्यूज के कारण भड़के हैं। पिछले दिनों भीड़ द्वारा हिंसा में जो बढ़ोतरी हुई उनमें फेक न्यूज़ का बहुत बड़ा हाथ है। कुछ ही मिनट में किसी भी खबर का वायरल हो जाना, चिंता का सबब बनता जा रहा है। सही और गलत की पहचान होना जरूरी है। नहीं तो बेकसूर लोग बेवजह ही मारे जाते रहेंगे।
इस सब के बावजूद कुछ लोगों ने समझदारी और धैर्य से काम लेते हुए खुद को सोशल मीडिया से दूर भी किया है, निरंतर कर भी रहे हैं। धीरे-धीरे वापस अपनी सामान्य जिंदगी में लौटने लगे हैं। खाली समय किताबों के साथ गुजारने लगे हैं। आपसी रिश्तों-संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। न फेक न्यूज़ पर विश्वास करते हैं, न ही उसे शेयर करते हैं। ट्रोलर्स को भी मजा चखाना उन्होंने शुरू कर दिया है। यह सब जरूरी है। नहीं तो हम ट्रोलिंग, फेक न्यूज़, अभद्र भाषा आदि के अंधे कुएं में ही यों ही डूबते चले जायेंगे।
बेहतर तो यही रहेगा कि केंद्र सरकार जितना जल्दी हो सके सोशल मीडिया के खिलाफ सख्त कानून बनाए। ताकि बात-बात पर इसका दुरुपयोग करने वालों पर अच्छे से लगाम कसी जा सके।
सोशल मीडिया की शुरुआत अपनों को नजदीक लाने, अनजान लोगों से मित्रता बढ़ने के लिहाज से की गई थी, नाकि किसी को ट्रोल करने या किसी के खिलाफ दुष्प्रचार करने को। इसके लिए हमें खुद को सुधारा ही होगा।
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